8 September 2015

हमे कर्मों का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं।


मित्रों आज तक हम सुनते आये है कि हमें कर्मो का फल मिलता हैं। 

     पर गलत हमें कर्मो का नहीं बल्कि भावों का फल मिलता हैं। कर्म तो मात्र एक साधन है फल तक पंहुचने का।
आइये एक कहानी द्वारा आपको कर्मो के फलों को बदलने का राज बताता हूँ।

     मित्रों एक समय की बात है एक सन्यासी अपनी कुटिया के बाहर बैठकर रोज परमात्मा का ध्यान लगाता था। उसकी कुटिया के सामने एक वेश्या का भी घर था।

     सन्यासी रोज वेश्या के कर्मो को देखकर दिनभर मन ही मन यह विचार करता की देखो ये कितना नीच कर्म कर रही है और ईश्वर द्वारा मिली इस देह को पाप कर्म में लिप्त कर अपना नरक बना रही हैं।

     वही दूसरी और वो वेश्या सन्यासी को रोज भगवान् का ध्यान लगाते देख यह चिंतन करती थी की देखो साधू महात्मा कितने पुण्यशाली हैं जो हमेशा भगवान् के ध्यान में लीन रहते हैं।

     पूरे जीवन काल तक दोनों का चिंतन एक दूसरे के प्रति ऐसा ही बना रहा। मरणोपरांत जब दोनों ऊपर जाते है तब भगवान् अपने दूतों से वेश्या को स्वर्ग भेजने का और साधू को नरक में डालने का फैसला सुनाते हैं।

     भगवान् का फैसला सुनकर साधू, भगवान् से कहता है कि प्रभु इस वेश्या ने जीवन भर अपनी देह को पाप कर्मो में लगाए रखा और मैंने जीवन भर इस देह को आपके ध्यान में लगाके रखा, फिर इसे स्वर्ग और मुझे नरक क्यों ?

     भगवान् ने कहा साधू महात्मा आपका कथन बिल्कुल सत्य है। आपने जीवन भर अपनी देह को जप और ध्यान में लगाये रखा। परन्तु तन से भले ही आप मेरा नाम जप रहे थे, पर आपका मन और मानसिक ध्यान तो हमेशा वेश्या के पाप कर्मो के चिंतन में लगा रहता था। वहीँ दूसरी और ये वेश्या रोज आपको देखकर एक हीं चिंतन करती थी कि साधू महात्मा कितने पुण्यशाली है जो हमेशा भगवान् का ध्यान लगाते है। और आप हीं को देखकर ये निरंतर मेरा ध्यान करती थी।

     महात्मा जी कर्म भले ही अच्छे हो, पर अगर आपका "ध्यान" संसार की बुराइयों में है, आपके मन के भाव बुरे है, तब तक मुक्ति संभव नही।

     महात्मा जी मंदिर में आकर लोग मुझे कितने हीं हाथ जोड़ले, दंडवत करले, प्रसाद चढ़ाले या और भी मुझे रिझाने के कोई कर्म करले, पर में वो कुछ नही देखता, में तो इतना कुछ करने के बाद भी उनके कर्म के पीछे छुपे मन के भावों को हीं देखता हूँ और उन्ही भावों के अनुसार उसके कर्म करते हीं फल देता हूँ।

     महात्मा जी लोग भले हीं रोज मंदिर जाते हो, परन्तु ये जरुरी नही की वे सुखी हो पायेंगे। क्योकि इस कलयुग में अधिकतर लोग अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु मन में बुरे भाव रखकर मुझे रिझाने का प्रयास करते हैं। हाथ मुझे जोड़ते है और मन से किसी और को कोसते हैं। पर में तो कर्म के सिद्धांतो की मर्यादा से बंधा हूँ.... इसलिये जैसे ही किसी ने हाथ पैर जोड़ने का कर्म किया, बस फिर में उसके मन के भावों के अनुरूप उसे फल देने को मजबूर हूँ।
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      मित्रों इस कहानी से तात्पर्य ये हैं कि भगवान हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल देते हैं। कर्म तो मात्र फल तक पंहुचने का एक साधन हैं।

     जैसे सीता हरण और रुकमनी हरण दोनों कर्म एक जैसे थे, परन्तु भाव अलग-अलग होने के कारण दोनों के फल भी भिन्न-भिन्न थे।

     जैसे कोई व्यक्ति किसी पर लाठी चार्ज करे तो उसको जेल में डाल दिया जाता हैं। पर इसकी जगह अगर पुलिस वाले लाठी चार्ज करे तो उन्हें कोई जेल में नही डालता बल्कि प्रमोशन दिया जाता हैं। आखिर दोनों के कर्म एक से होते हुए भी फल भिन्न-भिन्न क्यों ? वो इसलिये की उस व्यक्ति का भाव हिंसा फैलाने का था और पुलिस का भाव हिंसा मिटाने का था।

     तो मित्रों देखा दो लोगों ने एक ही तरह के कर्म किये फिर भी उनके फल भिन्न-भिन्न मिले। फिर आप कैसे कह सकते है कि हमें कर्मो का फल मिलता हैं। कर्म तो मात्र एक साधन है, फल तक पहुँचने का। बाकि फल का निर्धारण तो आपके भाव के साथ ही हो जाता हैं।

     इसलिए मित्रों में इस बात का खंडन करता हूँ कि हमें कर्मो का फल मिलता हैं।हमें कर्मो का नही बल्कि भावों का फल मिलता हैं।

     मित्रों इस कर्म के सिद्धांत को अगर आप समझ गए हैं तो आज से ही अपने हर कर्म को अच्छे भावों से जोड़ दीजिये। ऐसा करने से निश्चित हीं आपको कम समय में और न्यून परिश्रम में ही अच्छे परिणामों की प्राप्ति होने लगेगी।


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4 September 2015

आप वो भी पा सकते है जो आपके भाग्य में नही हैं


     भले हीं आपके भाग्य में कुछ नहीं लिखा हो पर अगर "गुरु की कृपा" आप पर हो जाए तो आप वो भी पा सकते है जो आपके भाग्य में नही हैं।

     आइये मित्रों जो किस्मत में नही लिखा है वो कैसे पाया जा सकता हैं, इसका लोजिक बताता हूँ।
मित्रों एक सत्य घटना हैं।

      काशी नगर के एक धनी सेठ थे, जिनके कोई संतान नही थी। बड़े-बड़े विद्वान् ज्योतिषो से सलाह-मशवरा करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नही मिला। सभी उपायों से निराश होने के बाद सेठजी को किसी ने सलाह दी की आप गोस्वामी जी के पास जाइये वे रोज़ रामायण पढ़ते है तब भगवान "राम" स्वयं कथा सुनने आते हैं। इसलिये उनसे कहना कि भगवान् से पूछे की आपके संतान कब होगी।

     सेठजी गोस्वामी जी के पास जाते है और अपनी समस्या के बारे में भगवान् से बात करने को कहते हैं। कथा समाप्त होने के बाद गोस्वामी जी भगवान से पूछते है, की प्रभु वो सेठजी आये थे, जो अपनी संतान के बारे में पूछ रहे थे। तब भगवान् ने कहा कि गोवास्वामी जी उन्होंने पिछले जन्मों में अपनी संतान को बहुत दुःख दिए हैं इस कारण उनके तो सात जन्मो तक संतान नही लिखी हुई हैं।

     दूसरे दिन गोस्वामी जी, सेठ जी को सारी बात बता देते हैं। सेठ जी मायूस होकर ईश्वर की मर्जी मानकर चले जाते है।

     थोड़े दिनों बाद सेठजी के घर एक संत आते है। और वो भिक्षा मांगते हुए कहते है की भिक्षा दो फिर जो मांगोगे वो मिलेगा। तब सेठजी की पत्नी संत से बोलती हैं कि गुरूजी मेरे संतान नही हैं। तो संत बोले तू एक रोटी देगी तो तेरे एक संतान जरुर होगी। व्यापारी की पत्नी उसे दो रोटी दे देती है। उससे प्रसन्न होकर संत ये कहकर चला जाता है कि जाओ तुम्हारे दो संतान होगी।

     एक वर्ष बाद सेठजी के दो जुड़वाँ संताने हो जाती है। कुछ समय बाद गोस्वामी जी का उधर से निकलना होता हैं। व्यापारी के दोनों बच्चे घर के बाहर खेल रहे होते है। उन्हें देखकर वे व्यापारी से पूछते है की ये बच्चे किसके है। व्यापारी बोलता है गोस्वामी जी ये बच्चे मेरे ही है। आपने तो झूठ बोल दिया की भगवान् ने कहा की मेरे संतान नही होगी, पर ये देखो गोस्वामी जी मेरे दो जुड़वा संताने हुई हैं। गोस्वामी जी ये सुन कर आश्चर्यचकित हो जाते है। फिर व्यापारी उन्हें उस संत के वचन के बारे में बताता हैं। उसकी बात सुनकर गोस्वामी जी चले जाते है।

      शाम को गोस्वामीजी कुछ चितिंत मुद्रा में रामायण पढते हैं, तो भगवान् उनसे पूछते है कि गोस्वामी जी आज क्या बात है? चिन्तित मुद्रा में क्यों हो? तो गोस्वामी जी कहते है की प्रभु आपने मुझे उस व्यापारी के सामने झूठा पटक दिया। आपने तो कहा ना की व्यापारी के सात जन्म तक कोई संतान नही लिखी है फिर उसके दो संताने कैसे हो गई।

      तब भगवान् बोले कि उसके पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के कारण में उसे सात जन्म तक संतान नही दे सकता क्योकि में नियमो की मर्यादा में बंधा हूँ। पर अगर.. मेरे किसी भक्त ने उन्हें कह दिया की तुम्हारे संतान होगी, तो उस समय में भी कुछ नही कर सकता गोस्वामी जी। क्योकि में भी मेरे भक्तों की मर्यादा से बंधा हूँ। मै मेरे भक्तो के वचनों को काट नही सकता मुझे मेरे भक्तों की बात रखनी पड़ती हैं। इसलिए गोस्वामी जी अगर आप भी उसे कह देते की जा तेरे संतान हो जायेगी तो मुझे आप जैसे भक्तों के वचनों की रक्षा के लिए भी अपनी मर्यादा को तोड़ कर वो सब कुछ देना पड़ता हैं जो उसके नही लिखा हैं।
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      मित्रों कहानी से तात्पर्य यही हैं कि भले हीं विधाता ने आपके भाग्य में कुछ ना लिखा हो, पर अगर किसी गुरु की आप पर कृपा हो जाये तो आपको वो भी मिल सकता है जो आपके किस्मत में नही।

इसलिए कहते है मित्रों कि...
भाग लिखी मिटे नही, लिखे विधाता लेख
मिल जावे गुरु मेहर तो, लगे लेख पे मेख ।।

     भाग्य में लिखा विधाता का लेख मिट नही सकता। पर किसी पर गुरु की मेहरबानी हो जाए तो विधाता का लेख भी दिवार की मेख पर लटका रह जाता हैं।



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15 August 2015

रहस्य

"रहस्य"

जो जीवन में आपको सब-कुछ देगा।

     दोस्तों, बहुत दिनों बाद लिख पा रहा हूँ। कुछ समय का अभाव और कुछ रहस्यों की खोज में समय निकल जाता हैं पर फिर भी जितना हो सके कोशिस करता हूँ कि जो मुझे पता हैं उस अनुभव को आपके साथ शेयर करूँ।

     आज मै एक बार फिर ध्यान की ही कुछ बात बताउँगा। हालाँकि मैं तो ध्यान के नित नये प्रयोग करता रहता हूँ। ध्यान का विषय तो अतिरहस्यमय हैं, इसकी शक्तियां इतनी ज्यादा हैं कि आम आदमी को सोच से परे हैं। पर संसार का एक मात्र सच यही है कि आज हमारे जीवन में हम जिन अच्छे-बुरे परिणामों को प्राप्त कर रहे हैं वो हमारे ध्यान के ही परिणाम हैं। पूरा संसार ध्यान के परिणामों को ही भोग रहा हैं। दोस्तों ईश्वर की यह कार्यप्रणाली इतनी शूक्ष्म हैं कि हम हर पल इससे जुड़े होते हुए भी इसे समझ नही पाते। इसलिये मित्रों ध्यान की इस प्रणाली को मात्र समझने की कोशिस ही न करें, बल्कि करें और देखें कि क्या सच में ये काम करता है या नही।

     आप जब देखेंगे तो जानेगे की ये बहुत आसान है और मेरा विश्वास मानिये कि जीवन में यही सिद्धांत काम करता है। मित्रों हम जाने अनजाने में जो भी सूचनायें अपने मन को देते है वही विचार लगातार मन के "ध्यान" द्वारा निश्चित ऊर्जा पाकर सच मे बदल जाते हैं। और अगर हम इस जादुई शक्ति को ठीक से उपयोग कर सकें तो किसी कथाकार की तरह हम अपने जीवन की कहानी जैसे चाहे लिख सकते हैं। फिर हमे भाग्य को या भगवान को या समाज को दोष देने की जरूरत नही है।

     मित्रो असल में अपने सारे दुखों और सुखों के लिये हम खुद ही जिम्मेदार हैं कोई दूसरा नहीं। हमने जाने-अन्जाने में अक्सर अपने मन को नकारात्मक सूचनायें देकर नकारत्मक बातों की और "ध्यान" लगाकर दुखों को अपने पास बुलाया है। पर इस बात हम समझने और मानने को तैयार नही कि हर नकारात्मक विचार हमारे "ध्यान" से ऊर्जा पाकर फलीभूत हो जाता हैं।

     हम लोग तो हमेशा अपने दुखों की रसीद दूसरों के उपर फाडने को तैयार रहते हैं। पर नहीं, अब बस भी करें, जीवन को और नरक न बनने दें, सत्य को समझे। थोडा अपने ईगो को साईड मे रखें, मेरी बात को थोडा समझने का प्रयास करें, फिर आपका जो फायदा होगा वो आप अपनी कल्पनाओं मे भी नहीं सोच सकते।

     दोस्तों जीवन को बदलने का बस एक यही तरीका है। मैंने पिछले 20 वर्षों की शोध के बाद इस सिद्धांत को समझा हैं। ज्योतिषीय ज्ञान प्राप्त करने के बाद ज्योतिषीय उपायों द्वारा लोगों के जीवन में परिवर्तन देख कर मैं हैरान हो गया.. कि जिन लोगों की जन्मपत्री में जो योग नही थे.. उनसे सम्बंधित उपाय करने से वे उस सुख को प्राप्त हो गये। बस इसी के चलते मुझे उपायों के पीछे छुपे रहस्य का ज्ञान हुआ की इस मन को लगातार किसी उपाय के माध्यम से हमने मश्तिष्क को वे सन्देश भेजे जो परिणाम हमें चाहिये थे। और एक निश्चित ऊर्जा पाकर वे संदेश फलीभूत हो गए। हालाँकि इस रहस्य का विज्ञान बहुत गहरा हैं, और अपनी शोध के चलते में पूर्णरूप से इसकी गहराई को समझ चूका हूँ कि कैसे हम अपने स्वभाव के अनुरूप अच्छी-बुरी बातों में अपना "ध्यान" लगाकर अच्छे-बुरे परिणामों की यात्रा करते हैं। पर उन सभी तथ्यों को मात्र एक छोटे से लेख में बताना सम्भव नहीं।

     इसलिये आप सिर्फ इतना समझ लें कि आपको अपने मन को लगातार सकरात्मक सूचनाएँ देनी हैं, कभी भी बुरी बातों और बुरे शब्दों की तरफ अपने "ध्यान" को आकर्षित होने नही देना हैं, लगातार अच्छी बातों और शब्दों से जुड़ा रहना हैं। यही कारण था कि हमारे ऋषि-मुनियों ने कथा-कहानिये, गीता-रामायण, पूजा-पाठ इत्यादि कर्मों पर "ध्यान" देने का जोर दिया था।

     मित्रों निरन्तर अपने मन को अच्छी सूचनायें देना बहुत ही आसान तरीका है। इसके लिये आपको किसी ज्योतिष या गुरु इत्यादि की जरूरत नही। बस अपनी किसी भी एक ईच्छा को या किसी एक लक्ष्य को चुन लें, और लगातार ऐसा महसूस करे की आप उस लक्ष्य को पा चुके हैं। अपने मन को लगातार ऐसी सकारात्मक सूचनाएँ देते रहिये-देते रहिये, और फिर देखिये कि ये जादू कितनी सहजता से ये काम करता है। मै दावे के साथ कहता हूँ कि ये सिद्धांत ही हमारे जीवन में हमे परिणामों तक पहुँचाता हैं, यह कभी फेल नही जाता।

     मित्रों जब से मैंने इस सिद्धान्त को समझा हैं तब से कितने ही लोगों के माइंड को प्रोग्राम कर यानी सकारत्मक मैसेज प्रेषित कर उन्हें सकारात्मक परिणामों तक पहुंचाया हैं। पर सब लोगों के माइंड को प्रोग्राम करना मेरे लिये सम्भव नही। इसलिये इस रहस्य के एक छोटे से नियम को आपके मश्तिष्क में प्रेषित कर रहा हूँ। भरपूर लाभ उठाइये।

     दोस्तों किसी सायर ने कहा हैं कि... किसी चीज को तुम सिद्दत से चाहो तो सारी कायनात तुम्हे उसे मिलाने में लग जाती हैं।



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6 July 2015

कैसे लोगों की एनर्जी चुराकर आप भी जीवन की उंचाईयों को छू सकते हैं


     कैसे लोगों की एनर्जी चुराकर आप भी जीवन की उंचाईयों को छू सकते हैं।

     आइये मित्रों इस रहस्य को समझते हैं।

     मित्रों अभी कुछ समय पहले मैंने अपने एक लेख में लिखा कि "भगवान् मूर्ती में नही बल्कि आपके मन में होते हैं, और आपके ही मन से "ध्यान" की ऊर्जा पाकर एक पत्थर भी भगवान् बन जाता हैं।

     मित्रों "दर्शन-शास्त्र" से जुड़ने के बाद मैंने यह पाया कि संसार में आज हमारे साथ जो कुछ भी हो रहा हैं वो हमारे मन के "ध्यान"  की वजह से हो रहा हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसको क्रमश: आत्मा और परमात्मा से ऊर्जा प्राप्त होती हैं, और इस मन का निरंतर ध्यान जिस भाव के साथ जिस विषय पर होता हैं, वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उधर होने लगता हैं।

     मित्रों जैसे भगवान् "राम" की मूर्ती को देखते समय आपके मन में या भाव होता हैं कि ये भगवान् हैं, जो हमारा कल्याण करते हैं। और ये ही नही मित्रों भगवान् "राम" का नाम लेते ही उनसे जुड़े सभी तथ्य हमारे अवचेतन मन से निकलकर चेतन मन पर उजागर हो जाते हैं। मित्रों यह प्रक्रिया तत्काल प्रभाव से स्वत: ही संपन्न होती हैं और इसके चलते आपके मन के इन्ही भावों के साथ आपका "ध्यान" उस मूर्ती पर बनता हैं। और आपका ध्यान जैसे भाव के साथ होता है वैसी ही ऊर्जा का प्रवाह उस मूर्ती की और हो जाता हैं जिसके चलते उस मूर्ती के चारों और वैसा ही "चुम्बकीय-क्षेत्र" यानी आभामंडल तैयार होता हैं। और जितने अधिक लोगों का ध्यान उस भाव के साथ उस मूर्ती पर होता हैं उसका आभामंडल उतना ही कल्याणकारी और शक्तिशाली होता जाता हैं।

     मित्रों हमारे मन से ये जो ऊर्जा (Magnetic Waves) निकलती हैं, उसे हम खुली आँखों से नही देख सकते। पर मन से ऊर्जा निकलती हैं ये ही सत्य हैं। आपने "नजर" लगने के बारे में तो सुना ही होगा। हालाँकि नजर तो सबकी एक जैसी ही होती हैं, दिखता तो सबको एक जैसा ही है। नजर ना तो अच्छी होती हैं और ना ही बुरी होती हैं। बस हर नजर के पीछे अच्छा-बुरा भाव जुड़ा होता हैं। किसी ने आपको बुरी नजर से देखा तो उसके मन से निकली नकारात्मक ऊर्जा आपके आभामंडल को खंडित करती हैं, और अच्छे भाव से आपको देखा तो आपका आभामंडल सकारात्मक ऊर्जा से पोषित होता हैं।

     मित्रों जब एक पत्थर मूर्ती, लोगों के ध्यान की ऊर्जा पाकर भगवान् बन सकती हैं, या लोगों की अच्छी-बुरी नजर आपको प्रभावित कर सकती हैं, तो लोगों के ध्यान की यही ऊर्जा आपको महान भी तो बना सकती हैं।
पर कैसे ???    आसान हैं दोस्तों...

     बस आपको लोगों के समक्ष स्वयं को एक बेहतर इंसान के रूप में प्रस्तुत करना हैं, किसी के भी मन में आपके प्रति किसी भी प्रकार का बुरा भाव ना रहे, ऐसा बनना हैं। लोगों का ध्यान आप पर जितना अच्छा होगा उतना ही उनकी सकारात्मक ऊर्जा से आपका आभामंडल पोषित होगा।

     मित्रों अगर आपका स्वभाव घमण्डी किस्म का हैं, तो मान के चलिये आपका घमण्ड चूर-चूर होने वाला हैं।

      क्यों ?

      क्योंकि जिन लोगों का स्वभाव घमण्डी होता हैं, उनके प्रति लोगों का भाव ये बनता हैं कि "भगवान् इसका घमण्ड चूर-चूर कर देगा"। बस मित्रों लोगों के इसी ध्यान के चलते ब्रह्माण्ड में आपके घमण्ड को चूर-चूर करने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती हैं जिसके चलते आपका ऐसी समस्या से सामना होता हैं जो आपके घमण्ड को चूर-चूर कर देती हैं।

     मित्रों आप जो भी काम करते हो उस काम की सफलता-असफलता का पता लगाना हैं तो लोगों के नेचर को पकड़ना सीखो, कि आपके इस काम के प्रति लोगों का भाव कैसा हैं। आपके काम के प्रति अधिकतर लोगों की क्या भावना हैं। बस अगर आपने "नेचर" को समझना सिख लिया तो दुनिया में आपसे कोई चीज अछूती ना रहेगी।

     मित्रों आप आज ये बात भलीभाँति समझ लीजिये कि आज लोगों का जैसा ध्यान आप पर हैं, उनके ध्यान की ऊर्जा पाकर आप वैसे ही परिणामों को प्राप्त होंगे। यह ईश्वरीय कार्यप्रणाली का ही एक हिस्सा हैं जो लोगों के ध्यान के जरिये आप ही के स्वभावनुसार आपको फल तक पहुंचाता हैं।

     अब अगर आप धनवान बनना चाहते हैं तो अपने और अपने परिवार वालों का रहन-सहन और व्यवहार ऐसा बनाइये की लोगों को लगे की आपका परिवार धनवान और संपन्न हैं। लोगों के लगातार ऐसे ध्यान के चलते उनके मन से निकली वैसी ही ऊर्जा आपको उस परिणाम तक पहुँचा देगी। पर मित्रों ये प्रक्रिया धीरे-धीरे प्रारम्भ करें। और इसमें लोगों को ऐसा भी ना लगे की आप दिखावा कर रहे हैं, नही तो उनका ध्यान अगर ऐसा बन गया की आप दिखावा कर रहे हैं, तो आप जीवन भर दिखावा ही करते रह जायेंगे।

     तो मित्रों इसे कहते हैं लोगों की ऊर्जा को चुरा कर जीवन की ऊंचाइयों को छूना।

     मित्रों बड़े-बड़े फिलोसॉफर अपने इसी ज्ञान के सहारे लोगों की एनर्जी चुरा कर अपने अलग-अलग पंथ बनाकर अमर हो गये। और आज भी इस फिलोसोफी को समझने वाले बड़े-बड़े गुरु लोग, लोगों को सम्मोहित कर अपने समागम द्वारा हजारों लोगों के ध्यान को अपनी और आकर्षित कर अपना नाम कमा रहे हैं।

     आइये दोस्तों आज ही अपने स्वभाव में परिवर्तन की शुरुआत कर, एक सुन्दर जीवन की और कदम बढाइये।

     सुनहरा भविष्य आपका इन्तजार कर रहा हैं।

Good Luck...

          Astrologer & Philopher
               Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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30 June 2015

कछुए की अँगूठी का रहस्य


मित्रों मेरा पिछला आर्टिकल "कछुए की अँगूठी का रहस्य"

     इस लेख सम्बन्धी मुझसे कुछ लोगों ने प्रश्न किया कि सर हमने कुछ समय पहले कछुए की अंगूठी धारण की थी, पर उसके बाद मन अशांत और चिड़चिड़ा रहने लगा और इसके चलते अँगूठी उतार दी।  और ऐसे में आपका विज्ञान और उसका सिद्धांत कि कछुए की अंगूठी धारण करने से सम्रद्धि आती हैं, वह धरा का धरा रह गया। ऐसा क्यों ?

     मित्रों कछुए की अँगूठी धारण कराने के पीछे हमारा एक मात्र प्रयोजन होता हैं कि व्यक्ति के "ध्यान" की दिशा को कछुए से सम्बंधित धारणाओं व गुणों इत्यादि से जोड़ना। यानी व्यक्ति के स्वभाव में कछुए के स्वभाव जैसे गुणों को विकसित करना।

     मित्रों अंगूठी धारण करने के बाद जैसे-जैसे हमारा जुड़ाव इस अँगूठी के साथ बढ़ता रहता हैं वैसे-वैसे स्वभाव में परिवर्तन होना शुरू हो जाता हैं। और ऐसे में उन लोगों को इससे प्रारम्भ में कुछ तकलीफ महसूस होने लगती हैं, जिनका स्वभाव कछुए के स्वभाव से विपरीत यानी उद्दण्ड, फुर्तीला या खरगोश के स्वभाव जैसा होता हैं। मित्रों निसन्देह स्वभाव में अचानक आने वाले इस परिवर्तन के कारण किसी-किसी को कुछ चिड़चिड़ापन जरूर आ सकता हैं।

     पर 90 दिनों तक जब निरन्तर हम इस अँगूठी के संपर्क में रहते हैं तो कछुए का गुण-स्वभाव हमारे सबकोंसियश मस्तिष्क में प्रोग्राम हो जाता हैं। जैसे कंप्यूटर में जब नया वर्जन आ जाता हैं तब कुछ दिनों तक अजीब सा लगता हैं ना, ठीक वैसे ही जब स्वभावगत परिवर्तन आते हैं तब थोडा अजीब सा महसूस होता हैं। और ऐसे में हम ये समझ कर अँगूठी निकाल देते हैं और बोलते हैं कि अँगूठी सूट नही हुई।

     मित्रों रत्न-धारण और कछुए की अंगूठी धारण करने के मूल में एक ही प्रयोजन हैं, भावों का परिवर्तन। क्योंकि भाव से स्वभाव बनता हैं, और स्वभाव के प्रभाव से कर्म संपन्न होता हैं, जिसके द्वारा हम फल तक की यात्रा करते हैं। इसलिए मित्रों अच्छा भाव होगा, तो अच्छा ही स्वभाव होगा, और स्वभाव अच्छा हुआ तो उसका प्रभाव और फल भी अच्छा ही होगा।

     भाव-स्वभाव-प्रभाव-क्रिया-कर्म-फल...(कर्म-सिद्धांत)

     मित्रों कछुए की अँगूठी धारण करने से सम्रद्धि आती हैं ऐसा मैंने सुना था। पर जब तक स्वयं किसी तर्क पर न पहुँच जाऊँ तब तक में उस बात को नही मानता, ये मेरा स्वभाव हैं। किसी भी उपाय के विज्ञान को समझे बिना उसका उपयोग करना मात्र मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं। शोध किसी की भी हो, पर उस पर अपना अनुभव एक मजबूत आत्मविश्वास पैदा करता हैं।


        Astrologer & Philopher
            Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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25 June 2015

क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर


क्यों सात बार राई वारने से उतर जाती हैं नजर ?

     मित्रों अक्सर हम सुनते है कि जब किसी को नजर लग जाती है तो उसे कहते हैं कि अपनी मुट्ठी में राई लेकर अपने सिर से सात बार वार कर फेंक दो। क्या राई को सात बार वार देने क्या नजर उतर सकती हैं ? आइये इसके पीछे क्या विज्ञान काम करता हैं समझने का प्रयास करते हैं।

     मित्रों अक्सर आप देखते होंगे की राई को जब किसी प्लास्टिक बेग से निकालते हैं तो राई उस प्लाष्टिक बेग से चिपक जाती हैं। वो उसके चुम्बकीय गन के कारण होता हैं। हालाँकि संसार की सभी चीजों में अपना एक चुम्बकीय गुण होता हैं पर राई में घर्षण से उसका चुम्बकीय गुण जल्दी सक्रिय हो जाता हैं जिसके चलते ये जल्दी ही किसी के औरा के संपर्क में आकर उसके नकारत्मक फिल्ड को अवशोषित कर लेती हैं।

     जब राई को सात बार हमारे शरीर पर से वारा जाता हैं तब इसका संपर्क हमारे शरीर के आभामंडल से होता हैं, जिसे हम सुरक्षा चक्र भी कहते हैं। राई के लगातार हमारे आभामंडल से टकराने से इसका चुम्बकीय गुण सक्रीय होकर हमारे शरीर के सातों चक्रों में फैली नकारात्मकता को सोख लेता हैं। सात बार वारने का मतलब हमारे सूक्ष्म शरीर के सातों चक्रों का शुद्धिकरण करना होता हैं। सात बार राई को वारने के बाद उसे घर से कुछ दूर नाली में फेंक दिया जाता हैं या जलाकर नष्ट कर दिया जाता हैं।

     मित्रों वैसे आभामंडल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इसके लिए साधारण तौर पर इतना बता देता हूँ कि आभामंडल हमारे शरीर का सुरक्षा चक्र होता हैं। जब ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अच्छी-बुरी दशा चलती हैं तो उसका सबसे पहला प्रभाव हमारे आभामंडल पर ही पड़ता हैं। पर अगर हम किसी अच्छी संगत, अच्छे विचार या किसी ज्ञानी गुरु के संपर्क में हो या किसी भगवान् में हमारी आस्था बहुत मजबूत हो तो ग्रहों के बुरे प्रभाव की रश्मियाँ हमारे उस आभामंडल यानी सुरक्षा चक्र का भेदन करने में कामयाब नही होती। इसलिए जो लोग निरंतर सत्संग करते हैं, सकारात्मक विचारों के संपर्क में रहते हैं ऐसे पुण्यशाली लोगों पर ग्रहों, टोने-टोटके और नजर इत्यादि का बुरा प्रभाव आसानी से नही पड़ता। और न ही कोई नकारात्मकता उनके आभामंडल को भेद पाती हैं।

     मित्रों ऐसे कई सारे टोटके इत्यादि है जिन्हें हम अंधविश्वास का नाम देकर नजर अंदाज कर देते हैं। क्योंकि हमें इनके गर्भ में छूपे सिद्धांत का पता नहीं होता।

(वैसे मित्रों कलयुग के चलते सदियों से चलती परम्पराओं के साथ आजकल कुछ बेतुके अंधविश्वासों का जन्म भी हो गया हैं जिनसे हमें सावधान रहने की जरुरत हैं। बिना वैज्ञानिक अर्थ के किसी बात को मान लेना मात्र मूर्खता के अलावा और कुछ नहीं)


       Astrologer & Philopher
            Gopal Arora
 









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20 June 2015

Electro magnetic field


     दोस्तों जिसे हम लोग आम भाषा में आत्मा, भूत या देव ईत्यादि नामों से जानते हैं वास्तव में वो एक "electro magnetic filed" है, यानी विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र हैं। और इस चुम्बकीय क्षेत्र में हमारे जन्म-जन्मांतरों के डेटा "चुम्बकीय तरंगो" के रूप में रक्षित होते हैं।

     दोस्तों कम्प्यूटर, सी डी या हार्ड डिस्क इत्यादि में रक्षित सभी डेटा मूल रूप में "electro magnetic filed" के रूप में ही रक्षित होते हैं। और सीडी या हार्ड डिस्क ईत्यादी घटक तो मात्र इन चुम्बकीय तरंगो को सुरक्षित रखने का साधन मात्र होते हैं। बाकी ये सभी डेटा कम्प्यूटर ईत्यादि के माध्यम से "चुम्बकीय तरंगो" के रूप में ब्रम्हांड में ही रक्षित होते हैं। बिना कम्प्यूटर इत्यादि के सहयोग के बिना इनका निर्माण नही हो सकता।

     बिल्कुल ठीक ऐसे ही हमारी आत्मा रुपी ऊर्जा के कण पर जन्म-जन्मान्तर के हमारे विचारों, भावों और कर्मो के डेटा रिकॉर्ड होते हैं। जब हम जन्म लेते हैं तब आत्मा के साथ ये रिकॉर्डेड डेटा शरीर के विकास के साथ न्यूरोन्स द्वारा रीड होकर शरीर रूपी कम्प्यूटर के साथ रन होने लगते हैं। जन्म-जन्मांतरों से रक्षित ये डेटा एक प्रोग्राम के रूप में हमारे स्वभाव के साथ सक्रीय हो जाते हैं। और उन्हीं रिकॉर्डेड प्रोग्राम के चलते हमारा स्वभाव चुनाव प्रक्रिया द्वारा कर्मो का चुनाव कर अच्छे-बुरे परिणामों की यात्रा करता हैं। और इसके साथ-साथ हमारा कम्युटर सिस्टम इस जन्म के भावों, विचारों और कर्मो को निरंतर अपनी मैमोरी में "electro magnetic filed"  के रूप में निरंतर रिकॉर्ड करता रहता हैं। 

     एक बात ध्यान रखे की जैसे हार्ड डिस्क ईत्यादि में डेटा को रक्षित करने के लिये कंप्यूटर इत्यादि घटक की आवश्यकता होती हैं ठीक वैसे ही हमारी आत्मा पर रक्षित ये डेटा भी बिना शरीर के ना तो रिकॉर्ड हो सकते हैं और ना ही रन हो सकते हैं। इसलिए अक्सर हम कथाओं में सुनते हैं की देवता लोग भी ये मनुष्य शरीर पाने हेतू लालायित रहते हैं। क्योकि बिना शरीर के देवता भी कुछ नही कर सकते और ना ही प्रेत कुछ कर सकते हैं।

     अक्सर हम जब किसी शरीर में देव या प्रेत ईत्यादि की उपस्थिति देखते हैं तब व्यक्ति के शरीर की हरकते बदल जाती हैं। उसकी आवाज इत्यादि भी बदल जाती हैं। मित्रों आत्मा, प्रेत या देव ईत्यादि के "electro magnetic filed" किसी शरीर में प्रवेश नही करते बल्कि हमारे मस्तिष्क के न्यूरोन्स इनके द्वारा भेजे गये चुम्बकीय सन्देशों को रीड कर प्रतिक्रिया शुरू कर देते हैं। जैसे एक सीडी में लतामंगेशकर के गाने हैं तो क्या सीडी पड़े-पड़े बोल उठेगी ? नही ना... उसके लिए हमे कम्प्यूटर या सीडी प्लेयर ईत्यादि की जरुरत होगी। सीडी में रक्षित डेटा का सम्पर्क कम्प्यूटर ईत्यादि से होने पर ही लता मंगेशकर की आवाज में गाने बजने शुरू होंगे। बस ठीक इसी तरह हमारे मष्तिष्क के न्यूरोन्स ऐसे ही किसी Magnetic Field ke संपर्क में आने पर वैसी ही प्रतिक्रिया देंगे।

     दोस्तों सारा का सारा संसार इन्ही तरंगो के रहस्यों से भरा पड़ा हैं। जो मैंने आपको बताया हैं वैसा आपने कही नही पढ़ा होगा। क्योंकि ये शोध बिलकुल नई हैं जिस पर विशवास कर मान लेना अभी फिलहाल नामुनकिन हैं। पर मित्रों इन पर बहुत शोध चल रहा हैं और आने वाले सौं वर्षों में इस क्षेत्र में एक बहुत बड़ी क्रांति देखी जा सकती हैं। आजतक हम जो सुन रहे हैं और पढ़ रहे हैं वो  धर्म और धार्मिक ग्रंथों की सीमा के दायरे में सिमित हैं। पर इस फिलोसोफी तक पहुँचने के लिए आपको धर्म की सीमाओं से ऊपर उठना होगा।
लिखने को और बताने को बहुत कुछ हैं पर समय का अभाव हैं दोस्तों। जब भी समय मिलेगा तब इस विषय पर और चर्चा करेंगे।

     मेरे विचार और सोच लीक से हटकर हैं। और मैं जानता हूँ की वर्तमान परिपेक्ष में इन तथ्यों को स्वीकारा जाना नामुनकिन हैं। क्योकि भविष्य की बातों को वर्तमान में स्वीकार करना कठिन हैं। ये विचार मेरे स्वतंत्र विचार हैं, मैं किसी पर अपने विचार थोप नही रहा हूँ। किसी को इसमें रूचि हैं तो स्वयं शोध करें। ध्यान के माध्यम से ब्रम्हांड की इन सूक्ष्मताओं से संपर्क किया जा सकता हैं। ध्यान के सहारे जब आप की ऊर्जा सहस्त्रार तक पहुँचती हैं तो आपके मष्तिष्क में चींटिया सी रेंगने लगती हैं। विज्ञान की भाषा में आपके न्यूरोन्स को अत्यधिक ऊर्जा मिलती हैं जिसके चलते आपके न्यूरोन्स की सेन्सेटिविटी बढ़ जाती हैं। और इसी के चलते आपकी चुंबकीय तरंगे ब्रम्हाण्डीय रहस्यों को खोजने में कामयाब हो जाती हैं।

              Astrologer & Philopher
                    Gopal Arora
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
We are grateful to Mr. Gopal Arora ji  for compiling "Electro magnetic field" sharing with us.
 
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13 May 2015

आखिर क्या रहस्य छुपा हैं कछुए की आकृति वाली अँगूठी में


मित्रों आजकल अधिकतर लोगों को कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी धारण किये हुए देखा जाता हैं।

      पर क्या कछुऐ की अँगूठी वास्तव में सम्रद्धि लाती हैं ?

      क्या इसके धारण करने से जीवन में खुशहाली आती हैं ?

      आइये इसके पीछे क्या सिद्धांत काम कर रहा हैं उसको समझते हैं।

     मित्रों आपने अक्सर मेरे लेख पढ़े होंगे। मैं हमेशा एक ही बात पर जोर देता हूँ कि, जीवन के इस सफर में आज हम जहाँ पर भी खड़े हैं, और जैसी भी स्तथि में हैं, उसका मूल कारण हमारा "ध्यान" हैं। मन ऊर्जावान हैं और इसका ध्यान जिस और होता हैं ऊर्जा का प्रवाह भी उस और बहने लगता हैं। और हमारे मन के भावों की ऊर्जा ध्यान के माध्यम से जिस और बहती हैं, हम उसी को प्राप्त होते हैं या उस लक्ष्य को पाते हैं।

    बस मित्रों कछुऐ की आकृति वाली अँगूठी पहनने के पीछे भी यही "ध्यान" वाला सिद्धांत ही काम कर रहा हैं।
अँगूठी को धारण करने के बाद जब-जब हमारा "ध्यान" इसकी और जाता हैं तब कछुए के साथ जुडी धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर फ्लेश होती हैं। यह क्रिया स्वतः ही संपन्न होती हैं। मित्रों जब भी किसी वस्तु चित्र इत्यादि की तरफ हमारा ध्यान जाता हैं तब तत्काल उससे सम्बंधित धारणाएँ हमारे मानसिक पटल पर प्रकट हो जाती हैं। पूजा-पाठ इत्यादि के पीछे भी यही प्रयोजन हैं कि हम इनके माध्यम से ईश्वर से जुड़े रहे।

     मित्रों कछुआ धैर्य, शांति, निरन्तरता (Continuity), लक्ष्य और सम्रद्धि का प्रतिक हैं।  कछुए और खरगोश की कहानी तो सभी जानते हैं कि कैसे कछुए ने Continuity रखते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया। और कछुआ लक्ष्मी जी का प्रिय भी हैं। क्योकि लक्ष्मी जी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी, इसलिए समुद्र से निकलने वाले सभी जीव मछली, कौड़ी, शिप, कछुआ इत्यादि सभी लक्ष्मी जी के मित्र माने जाते हैं।

     मित्रों कछुए को देखते ही उससे जुड़ी सारी धारणाओं की तरफ हमारा "ध्यान" चला ही जाता हैं, और इसी के चलते हमारे ध्यान की ऊर्जा का प्रवाह उस और हो जाता हैं, जिसके चलते हम धैर्य और शांत स्वभाव को रखते हुए समय पर लक्ष्य का भेदन कर सम्रद्धि को प्राप्त करते हैं।

     मित्रों यहाँ में एक बात और कहना चाहूँगा कि कछुए की आकृति वाली अँगूठी अगर किसी बच्चे को पहना दी जाये या किसी ऐसे व्यक्ति को पहना दी जाये जिसे कछुए से जुड़ी इन धारणाओं का ज्ञान नही, तो उसके लिए ये अँगूठी मात्र एक आभूषण साबित होगी। उसे इसका कोई लाभ प्राप्त नही होगा। क्योंकि उसके मन की ऊर्जा का प्रवाह इस और नही होगा।

     मित्रों हमारे धर्म की सभी परम्पराओं के पीछे भी यही सिद्धांत काम करता हैं। इन सभी परम्पराओं से जुड़ी कथा-कहानियों के माध्यम से हमारे "ध्यान" की दिशा को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया जाता हैं। इसलिए कहते हैं "दिशा बदलो, दशा तो अपने-आप बदल जायेगी"। यहाँ दिशा बदलने का मतलब विचारों की दिशा बदलने से हैं।

     मित्रों हमारे ऋषि-मुनियों को पता था कि इंसान इस रहस्य की गहराई को समझ नही पायेगा, इसलिये उन्ही सिद्धांतों को परम्पराओं का अमलीजामा पहना कर हमारे समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया। और हर परम्परा के द्वारा हमारे ध्यान को एक सकारात्मक विचार से जोड़ दिया।

     मित्रों अपने गहन शोध के बाद मैंने जब इस "सिद्धांत" को समझा तो मैं हैरान रह गया कि हजारों वर्ष पूर्व हमारे ऋषी-मुनियों और दार्शनिकों का चिंतन कितना गहरा रहा होगा, जिन्होंने इस सिद्धांत को समझकर अनेक ग्रंथो और परम्पराओं की रचनाएँ कर डाली।


     Astrologer & Philopher
            Gopal Arora









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