16 February 2015

सुबह जल्दी उठिए।


  सुबह का पहला घंटा पुरे दिन की दिशा तय करता है
                                      - हेनरी वार्ड बीचर

     'जो जल्दी सोते है,जल्दी उठते है, उनके पास स्वास्थ, पैसा और बुद्धि रहती है।'  इस कहावत को आज जितना नजर अंदाज किया गया है, उतना किसी दूसरी कहावत को नही किया गया।  यह बात मै अनुभव से जानता हू।  कभी मै भी रात को २-३ बजे सोकर सुबह ८-९ बजे उठता था और अगर आप आधी रात के बात सोते है, तो आप भी मेरी ही श्रेणी में आते है।  time management की दॄष्टि से यह बिलकुल ही गलत है, क्योंकि सुबह देर से उठने पर आपके पास दूसरे कामों के लिए तो समय रहता है लेकिन अपने लिये समय नहीं रहता है।

     लोग यह तर्क दे सकते है कि सुबह उठना बूटो की बात नहीं है, रात की शांति में काम ज्यादा अच्छी तरह होता है और रात को वे चाहे जितनी देर तक काम कर सकते है।  लेकिन तर्क लचर है।  सुबह ४ बजे उठने पर भी शांति ही रहती है और उसमें काम अपेक्षा कृत ज्यादा अच्छी तरह होता है। मुख्य बात यह है कि उस समय काम की गति भी तेज़ होती है, क्योंकि शरीर और दिमाग़ दोनों भी तरो ताज़ा होते है।  रात के वातावरण में oxygen की मात्रा कम हो जाती है, इसलिए आपका दिमाग़ कम चल पाता है और दिमाग़ी काम के लिए रात का समय आदर्श नहीं होता।  आदर्श समय तो सुबह का ही रहता है, जब वातावरण oxygen से भरपूर रहता है।  यकीन न हो, तो सुबह ६ बजे और शाम ६ बजे उसी सड़क पर घूम कर देख लीजिए।

     एक बात जान लीजिए, समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग में सबसे बड़ी दिक्क़त दूसरों की तरफ़ से आती है और सुबह यह दिक्कत सबसे कम होती है,इसलिए सुबह के १ घंटे में आप जितना काम कर लेते है, उतना दोपहर में ३ घंटे में हो पाएगा।  सुबह mobile का tension भी नहीं रहता, अख़बार भी देर से आता है, बच्चे भी देर से उठते है, इसलिए आप पूरी एकाग्रता से काम कर सकते है। 

     आदर्श स्थिति में तो नियम यह है कि सूरज उगने से २ घंटे पहले उठे और सूरज डूबने के २ घंटे बाद सो जाए।  जब आप सुबह ४ बजे उठते है, तो आपके पास समय ही समय रहेगा।  ऑफिस जाने से पहले भी आपके पास ४-५ घंटे का समय रहेगा।  इस दौरान आप व्यायाम कर सकते है, पुरे दिन की योजना बना सकते है और अपने महत्त्वपूर्ण काम निपटा सकते है।  दूसरी ओर, जल्दी सोने की आदत से भी आप बहुत समस्याओं से मुक्ति पा लेते है।  आपको देर रात की पार्टिओ से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा, आपकी जीवन शैली ज्यादा स्वस्थ हो जाती है।

     हमारे पूर्वजों की जीवनशैली ज्यादा स्वस्थ इसलिए थी, क्योंकि वे प्रकृति के करीब थे।  वे न सिर्फ प्राकृतिक वातावरण में रहते थे, बल्कि प्रकृति की लय में कार्य करते थे।  सुबह का वातावरण इतना पवित्र और शांत रहता था कि ऋषि-मुनि ब्रह्म मुर्हुत में भजन-पूजन करते थे।  वे मुर्गे की बाँग के साथ उठते थे और चाँद निकल ने पर सो जाते थे।  इस तरह वे अपने शरीर को प्रकृति के सांमजस्य में रख रहे थे।  आज आधुनिकता की होड़ में कृत्रिमता का माहौल इतना बढ़ चूका है कि प्रकृति से मनुष्य का सारा संपर्क ही टूट चूका है।  रात को देर तक जागने से मनुष्य की प्राकृतिक लय ख़त्म हो जाती है और वह सुबह देर से उठता है।  नतीजा यह होता है कि उसका हाजमा ख़राब होता है, कब्ज़ की शिकायत रहती है, ताज़गी और स्फूर्ति का अभाव होता है और दिन भर उसके शरीर में आलस भरा रहता है।


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