10 March 2015

Lord Gautam Buddha Quotes in Hindi



                                                             - जीवन परिचय -

Born/जन्म      -  c. 563 BCE or c. 480 BCE, लुम्बिनी / Lumbini 
Died / मृत्यु     - c. 483 BCE or c. 400 BCE (aged 80), कुशीनगर / kushinagar
Founder          -  Buddhism ( बौद्ध धर्म )

                                              - भगवान बुद्ध के अनमोल विचार -

1. मन सभी प्रवृत्तियों का प्रधान है।  सभी धर्म ( अच्छा या बुरा ) मन से ही उत्पन्न होते है।  यदि कोई दूषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख होता है।  दुःख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार बैलगाड़ी का पहिया बैल के खुर के निशान का पीछा करता है। 

2. मन सभी धर्मो का प्रधान है।  पुण्य और पाप सभी धर्म से ही उत्पन्न होते है।  यदि कोई प्रसन्न मन से कुछ कहता है या कुछ करता है तो उसका फ़ल सुख होता है।  सुख उसका पीछा उसी प्रकार नही छोड़ता जिस प्रकार मनुष्य की छाया उसका कभी साथ नही छोड़ती। 

3. उसने मुझे मारा, उसने मुझे हराया, उसने मुझे गाली दी, उसने मेरा बुरा किया - जो इन बातों को जीवन में याद रखते है उनके जीवन से वैर का अंत नही होता। 

4. उसने मुझे मारा, उसने मुझे हराया, उसने मुझे गाली दी, उसने मेरा बुरा किया - जो इन बातों को जीवन में याद नहीं रखते है उनके जीवन से वैर का अंत हो जाता है।   

5. घृणा का अंत घृणा से नही होता।  घृणा का अंत होता है प्रेम, दया, करुणा और मैत्री से। 

6. मूर्ख लोग नहीं समझते कि उन्हें एक न एक दिन संसार से जाना ही होगा।  जो इस बात को समझते है उनके कलह शांत हो जाता है। 

7. जो व्यक्ति काम भोग में लीन रहता है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन नही है, जिसे भोजन की सही मात्र का ज्ञान नही है, जो आलसी है और परिश्रम नही करता, मार उसे उसी प्रकार गिरा देता है जैसे वायु एक दुर्बल वृक्ष को गिरा देती है। 

8. जो व्यक्ति काम भोग में लीन नही रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन है, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान है, जो आलसी नही है, मार उसे उसी प्रकार हिला नही सकता जैसे वायु एक चट्टान का कुछ बिगड़ नही पाती। 

9. जिसने अपने मन को स्वच्छ नहीं किया है और काषाय वस्त्र धारण करता है, सत्य और संयम हैं ऐसा व्यक्ति, काषाय-वस्त्र धारण करने का अधिकारी नहीं है। 

10. जिसने अपने मन को स्वच्छ कर दिया है और तब वह काषाय वस्त्र धारण करता है, सत्य और संयम युक्त ऐसा व्यक्ति काषाय वस्त्र धारण करने का अधिकारी है। 

11. जो सार को नि:सार और नि:सार को सार समझता है ऐसे गलत चिंतन वाले व्यक्ति को सार प्राप्त नही होता। 

12. जो सार को सार और नि:सार को निःसार समझता है ऐसे शुद्ध चिंतन वाले व्यक्ति को सार प्राप्त हो जाता है। 

13. जैसे यदि घर की छत ठीक न हो तो उसमें वर्षा का पानी घुस जाता है, उसी प्रकार असंयमित मन में राग घुस जाता है। 

14. जैसे यदि घर की छत ठीक हो तो उसमें वर्षा का पानी नही घुस पाता, उसी प्रकार संयमित मन में राग नही घुस सकता। 

15. वह इस लोक में शोक करता है या मरणोपरान्त परलोक में शोक करता है।  पापी दोनों जगह शोक करता है।  वह अपने कर्मों के पाप फल को देखकर शोक ग्रस्त या पीड़ित होता है। 

16. वह इस लोक में प्रसन्न होता है या मरणोपरान्त परलोक में प्रसन्न होता है।  पुण्य करने वाला व्यक्ति दोनों जगह प्रसन्न होता है।  वह अपने कर्मों का पवित्र फ़ल देखकर मुदित होता है, आनंदित होता है। 

17. पापी इस लोक में संतप्त होता है या प्राणान्त के बाद परलोक में भी संतप्त होता है।  इस प्रकार पाप करने वाला दोनों जगह ही संतप्त होता है।  "मैंने पाप किया है" यह सोचकर संतप्त होता है और दुर्गति प्राप्त कर और भी अधिक संतप्त होता है। 

18. पुण्य करने वाला इस लोक में आनंदित होता है या प्राणान्त के बाद परलोक में भी आनंदित होता है।  इस प्रकार पुण्य करने वाला दोनों ही जगह आनंदित होता है।  "मैंने पुण्य किया है" यह सोचकर आनंदित होता है और सद्गति प्राप्त कर के और भी आनंदित होता है।

 19. ग्रंथो का कितना भी पाठ करे लेकिन प्रमाद के कारण उन धर्म-ग्रंथो के अनुसार आचरण न करे तो दुसरो की गायें गिनने वाले की तरह वह श्रमणत्व का अधिकारी नही होता है। 

20. ग्रंथो का थोड़ा ही पाठ करे लेकिन राग, द्वेष, मोह रहित होकर धर्म के अनुसार आचरण करे तो ऐसा बुद्धिमान, अनासक्त, भोगों के पीछे न दौड़ने वाला व्यक्ति श्रमणत्व का अधिकारी होता है।  

निवेदन :-
कृपया comments के माध्यम से बताएं कि Lord Buddha Quotes का हिंदी अनुवाद आपको कैसा लगा।

0 Comments:

Post a Comment

Sign Up


नयी पोस्ट ईमेल में प्राप्त करने के लिए Email SignUp करें

BEST OF SAFALBHARIUDAAN.COM